जीवन में शांति के लिये आत्मज्ञान कैसे प्राप्त करू ? / How can get peace in life hindi

जीवन  में शांति के लिये आत्मज्ञान कैसे प्राप्त करू ?/ How can get peace in life hindi
जब किसी बच्चे का जन्म इस पृथवी पर होता है तो उस समय उसका लालन पालन उसके मातापिता करते है। यह जग जाहिर है। जब बच्चा जैसे जैसे बड़ा होता है तो उस  समय तक वह अपने मातापिता की गाइडेन्स में रहता है। उसके बाद जैसे ही उसका दाखिला स्कूल गुरुकुल में होता है वह मातापिता के साथ ही गुरुओं का सानिंध्य भी उसको मिलता है। जब तक वह स्कूल में रहता है उस समय  तक उस पर नियंत्रण  गुरुजनों का रहता है। जिम्मेदारियां तो बहुत होती है परंतु कठनाई आने पर समाधान का मिलना आसान रहता है उसका कारण यह है कि हमारे पास समस्याओं को सुलझाने के लिये कोई न कोई है। यही वो जीवन है जब हमरे ऊपर जिम्मेदारी होने पर भी हम निश्चिन्त रहते है उसका कारण यह है कि राह दिखाने वाले लोग हमारे साथ होते है। जो गुरु के रूप में हमको वहां मिलते है।समस्या कहा आती है यह जरूरी है। हमारे जीवन मे समस्याये तब आती है जब घर की सारी जिम्मेदारी हमारे ऊपर होती है ओर हम बहुत बार अपने को अशान्त महसूस करते है। जब हम अपने को अशान्त महसूस करते है। तब  उस दौरान हमे अपने जीवन को शांति प्रदान करने के लिये किसी राह की आवश्यक्ता होती है। वही राह हमको ज्ञान में द्वारा प्राप्त हो सकती है। अब सवाल यह है कि आध्यत्मिक ज्ञान आखिर कहा से मिलेगा। आज हम इसी पर इस ब्लॉक पर चर्चा करेंगे।

आत्म ज्ञान पाने के बहुत से तरीके है उनमें से कुछ के बारे में हम बतलायेंगे। सबसे पहले यह जाने की आत्मज्ञान  को लेने के लिये क्या किसी गुरु के पास जाने की जरूरत है इस सवाल का उत्तर प्रथम दृष्टि में हा ही होगा। उसका कारण यह है कि जब आत्मज्ञान पाने वाले को वो ज्ञान का पता नही है जिसमें उसको  आत्मा ओर मस्तिष्क को शांति कैसे मिले तो उसे गुरु का दरवाजा खटखटाना ही पड़ेगा। फिर सवाल उठता है कि गुरु कैसा हो । उन्हें किसी  सद्गुगुरु की खोज करनी होगी जो उनको वो दे सके जिसकी उनको छह है। जिससे उन्हें  शांति मिले ओर इस लोग को तो सुधरे ही अपना परलोक भी सुधार सके। ऐसी  संजीविनी देने वाला गुरु चाहिये। जो आत्मा का साक्षात्कार परमात्मा से करवाने की  शक्ति रखता हो। सच्चा हो। जीवन प्रयन्त प्रभु की सेवा में समर्पित हो। 

आत्मज्ञान में इंद्रियों को वश में करना होता है। आज हमारे हर चीज उपलब्ध है । पुस्तको का धर्मग्रंथोंक भंडार उपलब्ध है। उसको पढ़ कर मनन कर भी आत्मज्ञान की ओर बढ़ा जा सकता है। वश जीवन को साधने की जरूरत है। एक योगी इसी लिये योगी कहलाता है क्योंकि वह अपने जीवन को साध लेता है। जिस भूमिका में जीवन को रखता है जीवन उसी तरह चल पड़ता है उसका कारण इंद्रियों को वश में करके ही यह सम्भव हो पाता है। पुस्तको से जो असीम ज्ञान पाया होता है वह उनके अंदुरुनी अंधकार को मिटाता है जीवन मे नई ज्योति जागता है जिससे कि जीवन को आत्मज्ञाम पाने में सुविधा मिलती है। 

ज्ञानेन्द्रियाँ क्या होती है  ज्ञान पाने में कैसे सहायक   ज्ञानेन्द्रियाँ  पांच किस्म की होती है जैसे आँख कान नाक त्वचा जीभ। जिसमे आँख का काम देखने का होता है।कान का काम सुनने का होता है। नाक किसी किस्म की गंध को परखती है। जीभ का कार्य स्वाद का पता लगाना होता है। मनुष्य जब ज्ञान प्राप्त करने की सोचता है तो ये ज्ञानेन्द्रियाँ उसकी मदद करती है। जो उसको बाहरी  ज्ञान का पता लगती है। जब मनुष्य को अंदुरुनी ज्ञान की इच्छा जागृत होती है तो उसको अपनी कुंडली को जगाना होता है। साथ चक्रों से होकर कुंडली जगती है । जिसको जगाना आसान काम नही होता है। उसके लिये शुरुवात में 15 से 20 मिनट आसन में बैठना होता है। जब आसन लग जाता है तब धीरे धीरे  अंदर की ओर अपने चक्रो में  प्रवेश करना होता है जैसे जैसे आप उन चक्रो में प्रेवेश करते है वैसे वैसे ही अपने मूलाधार चक्र की ओर प्रवेश करते है। एक लंबा समय लगता है। इतना आसान नही है कुंडली को जगाना लेकिन जो जगा देते है वे संत बन जाते है। पहले बहुत से संत अपनी कुंडली शक्ति को जगा चुके है। आज भी ज्ञान प्राप्त के लिये लोग इसको जगाते है। मैंने इसे लोगो को भी आज के समय मे देखा है कि जो भारतीय है विदेशों में रहते है। ध्यान भक्ति करते है ओर अपने ध्यान के द्वारा अपनी कुंडली को जाग्रत किया है। ऊपर से वे अपनी साइंस जैसे  बड़ी क्लास के विषय की पढ़ाई भी कर रहे है। इसलिये कोई भी आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिये अपनी कुंडलियों को जाग्रत कर सकता है। कुंडली जाग्रत करने से होता क्या है वह हम आपको बताएंगे। कुंडली जाग्रत करने से अपने भीतर प्रकाश एक दिब्य प्रकाश का अनुभव होता है। जब मनुष्य की कुंडली जाग्रत होती है तो उसको अपना शरीर हल्का लगता है मानो वो जमीन से ऊपर की ओर उठ रहा है। यह इसकी पहचान है। जब मनुष्य की कुंडली जाग्रत होती है तो जो दिब्य प्रकाश उसके अंदर  निकलता है वो ज्ञान प्राप्त करने में सहायक होता है। कुंडली जाग्रत करने के लिये जो ध्यान लगाया जाता है उसमे सांसों पर ध्यान केंद्रित करना होता है। जब ध्यान केंद्रित करने वाला वाला ब्यक्ति जब सासों पर ध्यान लगाता है तो उसके ध्यान लगाते ही आगे की ओर अपने अंतर्मन में जाता है। जिसमे आँखे बंद करके   त्रिकुटी के मध्य में ध्यान केंद्रित करना होता है। शुरू में यह   अभ्यास 15 मिनट तक करना चाहिये । उसके बाद अभ्यास को आगे बढ़ाना चाहिये। यह प्रकिर्या  लगातार जब कुछ महीने चलेगी ओर जब लगने लगे कि  सांसों को सांसों मे ही जपने की शक्ति उत्पन्न हो गयी हो ओर ऐसा लगता हो कि ब्यक्ति को अपने मूलाधार को जाग्रत कर लिया हो तब वह ब्यक्ति एक  साधक बन जाता है। उसकी कुंडलियां जाग्रत हो जाती  है ओर वह एक सिद्ध  पुरुष बन जाता है। ऐसे ब्यक्ति को आत्मज्ञान  पाने में मदद मिलती है क्योंकि वो एक साधक बन चुका होता है।0


जो लोग धर्मग्रंथों को पढ़ते है उनको पता होगा कि ये ग्रंथ भी मनुष्य ने ही लिखे है। जब मनुष्य को ज्ञान प्राप्त हुआ तब जाकर उसने ग्रंथो की रचना की। हमारे ग्रंथ ही आज हमारे पूर्वजो के ज्ञान का आधार है।उन्होंने जो ज्ञान प्राप्त किया उसको सारे जगत में फैलने के लिये ही ग्रंथो में उसको उतारा। ग्रंथ ही हिन्दू धर्म की असली पूजी है लेकिन बहुत कम लोग आज उन ग्रंथो को  पढ़ते है। पहले लोग जो थोड़े भी पढ़े लिखे होते है वे जरूर धार्मिक ग्रंथों को पढ़ते थे और अपना ज्ञान  बढ़ाते थे साथ ही इस ज्ञान को दुसरो तक  शेयर भी करते थे। चाहे बहुत से लोग पुस्तक या दूसरी चीज न लिख पाये हो लेकिन उन्होंने अपने ज्ञान को दूसरों के बीच बैठकर जरूर सुनाया होगा। पहले जमाने मे ज्ञान बढाने के लिये मोबाइल टीवी नही थे। उस समय पुस्तक ही एक आधार ज्ञान बढाने का होता था। जो लोग पढ़ने में रुचि रखते थे वे पुस्तके जरूर पढ़ते थे। इस तरह से यह भी एक ज्ञान प्राप्त का माध्यम था जो  आज भी चल रहा है।










Previous
Next Post »