घनश्याम बिड़ला का पुत्र के नाम पत्र ( Inspirational latter ) / G D Birla latter in the name of his son B k Birla hindi

Ghanshyam birla latter to his son
घनश्याम बिड़ला का पुत्र के नाम पत्र 

एक पिता का अपने पुत्र के नाम एक ऐसा पत्र जो हर एक को पढ़ना चाहिये।
 घनश्याम  बिड़ला का अपने बेटे के नाम लिखा हुआ पत्र इतिहास के सर्वश्रेस्ठ पत्रों में से एक माना जाता है। विश्व मे जो दो सबसे सुप्रसिद्ध ओर आदर्श पत्र माने जाते है उनमें एक पत्र को अब्राहम लिंकन का माना जाता है ओर दूसरा पत्र घनश्याम  बिड़ला का पत्र का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। यह पत्र घनस्याम बिड़ला ने अपने पुत्र श्री बसंत कुमार बिड़ला के नाम 1934 को लिखा गया। यह पत्र बहुत रोचक ओर प्रेणादायी है। इस पत्र को जो एक बार पढ़ता है, उसका मन बार बार इस पत्र को पढ़ने का करता है।

चि. बसंत
यह जो लिखता हूं उसे बड़े होकर ओर बूढ़े होकर भी पढ़ना, अपने अनुभव की बात कहता हूं। संसार मे मनुष्य जन्म दुर्लभ है ओर मनुष्य जन्म पाकर , जिसने शरीर का दुरुपयोग किया , वह पशु है। तुम्हारे पास धन है, तंदुरुस्ती है, अच्छे साधन है, उनको सेवा के लिये उपयोग किया, तब तो साधन सफल है, अन्यथा वे शैतान के  औजार है, तुम इन बातों को ध्यान में रखना।

धन का मौज- शोक में कभी उपयोग न करना, ऐसा नही है की धन  सदा रहेगा ही ,इसलिये जितने दिन पास में है उसका उपयोग सेवा के लिये करो। अपने ऊपर कम से कम खर्च करो। वाकि जनकल्याण ओर दुखियो का दुख दूर करने के लिये करो। धन सक्ति है, इस शक्ति के नशे में किसी के साथ अन्याय हो जाय सम्भव है। इसका ध्यान रखो की अपने धन के उपयोग से किसी के साथ अन्याय न हो। अपनी संतान के लिये भी यही उपदेश छोड़कर जाओ । यदि बच्चे मौज- शौक, ऐशोआराम करने वाले होंगे तो आप पाप करेगे ओर हमारे ब्यापार को चौपट  करेगे। ऐसे नालायको को धन कभी न देना। उनके हाथ मे जाये उससे पहले ही जनकल्याण के किसी भी काम मे लगा देना या गरीबो में  बाट देना। तुम उसे अपने अंधेपन से संतान के मोह में स्वार्थ के लिये उपयोग नही कर सकते। हम भाइयों ने अपार मेहनत से ब्यापार को बढ़ाया है तो यह समझकर की वे लोग इस धन का सदुपयोग करेगे।

भगवान को कभी न भूलना , वह अच्छी बुद्धि देता है। इन्द्रियों पर काबू रखना,वरना यह तुम्हे डुबो देगी। नित्य नियम से ब्यायाम ,योग करना। स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी सम्पदा है।स्वास्थ्य से कार्य मे कुशलता आती है। कुशलता से कार्यसिद्धि ओर कार्यसिद्धि से समृद्धि आती है। सुख समृद्धि के लिये स्वास्थ्य ही पहली शर्त है। मेने देखा है कि स्वास्थ्य सम्पदा से रहित होने पर करोड़ो -अरबो के स्वामी भी कैसे दिन हीन बन कर रह जाते है। स्वास्थ्य के अभाव में सुख साधनों का कोई मूल्य नही । इस सम्पदा की रक्षा हर उपाय से करना। भोजन को दवा समझ कर खाना। स्वाद के वश होकर खाते मत रहना। जीने के लिये खाना, न कि खाने के लिये जीना।
                                     धनश्याम बिड़ला


Q  घनश्याम बिड़ला के पत्र से क्या शिक्षा मिलती है ?

Ans घनश्याम बिड़ला के लिखे अपने बेटे के नाम पत्र से यह शिक्षा मिलती है कि हम बहुत बार अपने संतान के मोह में पड़कर उसके लिये धन इकठ्ठा तो करते है लेकिन बेटा संस्कार विहीन होने से उस धन का दुरुपयोग होने का डर रहता है। धन का दुरुपयोग अनेक तरीको से किया जा सकता है जैसे धन को जूए में इस्तेमाल किया जाना। धन को शराब में उठाना। धन को वेस्यालयो में इस्तेमाल करना। धन के बल पर गुंडागर्दी करना। गरीबो असहाय लोगो को दुःख देना। इसलिये श्री घनश्यान बिड़ला जी नैतिक शिक्षा अपने  बेटे को पत्र के माध्यम से दे रहे है कि संभावना लग रही हो कि पुत्र गलत रिस्तो पर चल रहा हो तो पुत्र के मोह में धन को संचय करना गलत निर्णय होगा क्योकि यह धन यदि गलत हाथों में पड़ गया तो उसका दुरुपयोग निश्चित है। धन के ऐसे दुरुपयोग को रोकने का उन्होंने आसान तरीका बताया है। वे बताते है कि ऐसे समय किसी तरह के मोह में न पड़े ओर धन तो जब लगे कि इसका दुरुपयोग होना ही है तो उससे पहले ही उस धन को गरोबो अश्याय लोगो मे बांट देना चाहिये। जिससे गरीबो असहाय लोगो की मदद भी हो जाएगी और धन का आप सदुपयोग भी कर सकेंगे। उत्तर कैसा लगा कॉमेंट कर सकते है।।














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