खुशी के वो दिन कहानी / Happy those days hindi story

खुशी के वो दिन कहानी / Happy those days hindi story
यह बात उन दिनों की है जब मेरी खुद की उम्र 27 साल की थी। उस समय मैं अपनी नवविवाहिता पत्नी के साथ उत्तर पूर्व के सुदूर क्षेत्र में सरकारी जॉब में था। घर मे हम दोनों रहते थे। आफिस भी घर के पास ही था। हम दोनों बहुत प्रसन्न रहते थे। लेकिन हमारे पास समय बिताने के लिये दूसरा साधन नही था। उस जमाने मे ब्लैक एंड वाइट टीवी निकला तो था लेकिन इसकी उपलब्धता हर जगह नही थी। यह बात सन 1994 की है। उस समय हमारे एक मित्र जो नये नये दोस्त बने थे। उनकी भी नई शादी हुई थी। उनको भी मनोरंजन का साधन नही मिल पा रहा था। 

एक दिन वह बड़े अधिकारी के साथ बड़े शहर गये थे  ओर उन्होंने वहां कॉपरोटिव में साहब को अपने लिये टीवी खरीदते देखा तो उनका मन भी टीवी लेने को हो गया। वह साहब को बोलकर एक टीवी अपने लिये भी खरीद लाये। उस जमाने मे हमारी पूरी कॉलोनी में एक टीवी था जिसके चलते कॉलोनी के दर्शक का भार उस घर पर ही था  लेकिन  अब भार कुछ हद तक कम हो गया था। दूसरी बात हर ब्यक्ति का अपना ग्रुप होता है चाहे वो देश मे रहे या प्रदेश में। जो लोग उस घर मे नही जाते थे उनके लिये अब कुछ हद तक कोई स्पेशल प्रोग्राम होने पर सुविधा हो गयी थी। उस जमाने मे हम कुछ दूर कॉलोनी से रहते थे तो हमे टीवी के समाचार ओर रामायण सीरियल जो उन दिनों चला था उसका आनन्द लेने का मौका नही मिल रहा था। एक दिन हम अपने मित्र जो नये दोस्त चौधरी जी बने थे उनसे मेने कहा कि जब भी आप बड़े शहर जाते है तब हमारे लिये भी टीवी ले कर आ जाना । वे बड़े उदार ब्यक्तित्व के थे। वे बोले कि 2600 रुपए से मैने टीवी खरीदा है एक महीना लिया हुआ है। आपको यहां तो टीवी मिलेगा नही आप इसी टीवी को लेकर जाओ। मेने तुरन्त हा कर दी ओर उनके रुपये चुकाए ओर टीवी लेकर घर आ गया । उस दिन मैं ओर मेरी पत्नी बहुत प्रसन्न थे। 
बच्चे उस समय थे नही। मेने  तुरन्त टीवी लेकर अपने घर आकर फिट किया और लंबा से एंटीना को फिट करने में बड़ी मस्कत करनी पड़ी जैसे तैसे एंटीना फिट हुआ फिर सपने समाचार सुने। पसन्द के सीरियल देखे । यह दिन हमारे लिये बहुत खुशी का दिन था। आज जब भी हम उस दिन को याद करते है खुशी से झूम जाते है। 










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