आदि शंकराचार्य का जन्म सनातन धर्म के लिये वरदान / Aadi Shankracharya ka janm Sanatan dharm ke liye vardan in hindi

आदि शंकराचार्य का जन्म सनातन धर्म के लिये वरदान / Aadi Shankaracharya ka janm Sanatan dharm ke liye vardan in hindi

आदि शंकराचार्य जी संस्कृत भाषा के विद्वान थे। वह भारतवर्ष के एक महान दार्शनिक के साथ ही धर्मप्रवर्तक के रूप में हिन्दू धर्मालंबियों में सम्मानित एवम पूजनीय है।उनको भगवान शंकर का अवतार माना जाता है। उनके द्वारा
 की गयी टिकाए बहुत प्रशिद्ध हुई जो उन्होंने भगवतगीता उपनिषदों ओर वेदांत सूत्रों पर की। उन्होंने सांख्य दर्शन का प्रधान कारण वाद ओर सीमंशा दर्शन के ज्ञान कर्मसमुच्चयवाद का खंडन किया। आदि शंकराचार्य जी ने भारतवर्ष में चार मठों  की स्थापना धर्म स्थापन के नाते की।उनके द्वारा स्थापित ये मठ आज भी अपनी प्रशिद्ध बने हुए है। लाखो हिन्दू धर्मावलंबी हर वर्ष इन मठों के दर्शन करने जाते है। इन मठों पर जो सन्यासी आसीन होते है उनको शंकराचार्य की उपाधि से  सुशोभित किया जाता जाता है। हर सनातनी हिन्दू के लिये ये शंकराचार्य बहुत पूजनीय होते है। 

आदिशंकराचार्य जी द्वारा स्थापित मठ इस प्रकार है।

1 उत्तर में ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम

2  दक्षिण में श्रेगेरी पीठ

3   पश्चिम में द्वारिका  शारदा पीठ

4  पूर्व में पूरी गोवर्धन पीठ

इन  पीठो में अनेक विधर्मियो को अपने सनातन हिन्दू धर्म मे दीक्षित किया गया था। ये शंकर के अवतार माने जाते थे। इन्होंने वृहमसूत्रो की बड़ी ही विशद ओर रोचक ब्याख्या की थी।

जन्म                        788 ई0
                            ग्राम कलाड़ी, घेर                                                       साम्रज्य वर्तमान में केरल , भारत                                      नाबुदारी ब्राह्मण
    
मृत्यु                   820 ई0 में मात्र 32 वर्ष की उम्र में                                     केदारनाथ पाल साम्रज्य वर्तमान में                                   उत्तराखंड, भारत
पिता                    श्री शिवागुरु

माता                श्रीमती  आयार्बा

गुरु                      आचार्य गोविंद भगवत्पाद

दर्शन                    अद्वेत वेदांत उपन्यास

सम्मान                शिवावतार, आदिगुरु , श्रीमज्जागदगुरु                             धर्मचक्र प्रवर्तक

धर्म                    सनातन हिन्दू

भाषा                   संस्कृत                      

राषटीयता               भारतीय


इनके विचार ओर उपदेश आत्मा परमात्मा की एकरूपता पर आधारित है। इनका मानना था कि परमात्मा सदगुण ओर निर्गुण दोनों ही स्वरूपों  में रहता है। स्मार्त संप्रदाय में आदि शंकराचार्य को शिव का अवतार माना जाता है। इन्होंने ईश, केन , कठ, प्रश्न, मुंडक, मांडूक्य,एवरेय, वेटिरिय, वृहदनयक ओर छंदोगयोप्शिद पर काब्य लिखा।

जीवनशैली

जन्म से ही आदिशंकराचार्य की जीवन शैली भिन्न थी। आदिशंकराचार्य जी ने वेद वेदांतो के इस ज्ञान को भारत के चारो कोनो में फैलाया असल मे उनका जो वास्तविक उद्देश्य लोगो को प्रभु की दिव्यता के बारे में बतलाना था। उनका कहना था कि ब्रह्मा  सवर्त्र विर्धमान है। वह हर चीज में विर्धमान है। जहाँ वह सद्गुण में है तो वही वह निर्गुण में भी है। वह ब्रह्मा के मैं  ओर मैं कोंन हु के सिद्धांत को शंकराचार्य जी ने प्रचारित किया।उन्होंने शिव शक्ति की महिमा को भी पचारित किया लोगो को उसका महत्व बतलाया।

शंकराचार्य जी का जीवन स्तर

शंकराचार्य जी का जीवन स्तर तीन चीजो पर आधारित था। जहाँ वह प्रभु को मानते थे उनके बारे में सोचते थे। वही वह मनुष्य के बारे में भी सोचते थे कि मनुष्य क्या है उसके अंदर आत्मा का निवाश परमात्मा से उसका मिलन। आत्मा परमात्मा एक दूसरे से मिले है यह उन्होंने ही दुनिया को बतलाया। अन्य में वह जीव जंतु पेड़ पौधों प्रकृति की सुंदरता मोहता का महत्व बतलाया ओर प्रचारित  किया और  बतलाया कि जब तीनो मिल जाते है तो भक्ति योग कर्म तब आनन्द ही आनन्द प्राप्त होता है। स्वयं भी वह इसी तरह जीते थे।













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