आत्मबोध ज्ञान क्या है क्या यह मनुष्य के लिये जरूरी है
आत्मबोध शब्द से ही आप समझ सकते है कि इसका मतलब आत्मा के बारे में जानना है। एक मनुष्य अपनी आत्मा के बारे में क्यो जानना चाहता है। सनातन धर्म दुनिया का सबसे पुराना धर्म जिसका मतलब ही निकलता है की जीविका का धर्म जीविका के लिये कैसे सदुपयोग किया जाये। बच्चा जब गर्भ में आता है उसके अंदर जान आ जाती है तभी से वह चीजो को समझने लगता है इसका उदाहरण अर्जुन का बेटा अभिमन्यु है इससे अच्छा उदाहरण आपको नही मिल सकता है जिसने अपने पिता द्वारा बताई युद्ध कौशल की नीति को गर्भ में ही सीख लिया था। यदि द्रोपदी को नींद नही आती तो वह पूरा कौशल सीख जाता ओर युद्ध से वह विजयी होकर लौटता लेकिंन द्रोपदी ने सोचा भी नही होगा कि उसकी नींद से उसके गर्भ में पल रहे बेटे का कितना बड़ा नुकसान हो रहा है। उस समय यदि उनको यह आत्मबोध हो जाता तो वह यह गलतीं कभी नही करती। इसलिये कहा गया है कि समय पर अपनी आत्मा के ज्ञान का बोध होना जरूरी है। जैसे कि आत्मा का बोध परमात्मा से है आपने देखा होगा कि बहुत बार कुछ शुभ अशुभ जब घटित होने वाला होता है तब आत्मा को पता चल जाता है यह किस कारण से होता है यह उन्ही लोगो को होता है जिनको आत्मा का कुछ सीमा तक बोध होता है जिसके कारण ही वे इस जग को जान पाते है। हमारे शरीर मे ब्रह्मांड के सारी चीजें मौजूद है जिनमे समुद्र से भरा पानी से लेकर मिट्टी, ठोस धातुवे, आकाश ओर तो ओर ज्ञान गंगा भी मौजूद है आखिर क्यों नही हम अपने आत्मा का बोध पा सकते है। सब कुछ हो सकता है वो भी अपने नित्यकर्मों के साथ बस कुछ त्याग करना होता है जो सब नही कर पाते है बस वही कुछ समय ध्यान लगा कर कुछ विशेष करके हम भी आत्मबोध हो सकते है जिससे कि हम अपनी आत्मा को तो पहचानेंगे ही साथ ही अपने आने का उद्देश्य को भी समझ पाएंगे। यही हम अपने जीवनकाल में यह नही कर पाये तो जीवन का उद्देश्य को समझ नही पाएंगे। जिससे यह होगा कि हम 84 के फेर में पड़े रहेंगे। यदि हम समय पर आत्म बोध हो जाते है तो अपने आने वाली योनि के लिये हम कुछ न कुछ जरूर कर पाएंगे ओर यह भी हो सकता है कि हम 84 के फेर से बच जाए ओर प्रभु की शरण मे हमेशा के लिये चले जाएं।