कविता एक कंजूस की / ,Kavita ek kanjus ki hindi
कविता एक कंजूस की
जो अपनी पोल खुद खोलता है
किसी को पता नहीं उसके बारे में
लेकिन वो अपनी स्क्रिप्ट खुद लिखता है
उसकी स्क्रिप्ट चालू वहा से होती है
जब उसे किसी मंदिर में पूजा को जाना होता है
मंदिर की सामग्री खरीदने में वह कम दाम की चीजों को सराहता है
खुद मक्खन रोटी खाए बढ़िया फल खाए महंगी मिठाई खाए
महंगा कपड़ा पहने
लेकिन जब दूसरे को देने की बारी आती है वह सस्ता तलाश करता है
हाथ से जिसके कभी कुछ झड़ा नहीं वो क्या जाने
दान की रीत क्या है
खुद आधा पेट खाकर भी दूसरो को भरा पेट खिलाया जाता है।
दोस्तो याद रखो जिस भगवान ने इतना कुछ दिया है
उसको कुछ देने में कंजूसी तो मत करो
यदि कपड़ा भी उसको देना है ओर आपकी जेब ठीक ठाक है
तो दिल खोलकर अच्छा ही देना
ये मत सोचना यह एक फॉरमोल्टिज है
इसको तो पंडित लेकर जायेगा
यही सोच को ठीक करना
अपने मन को सुंदर भगवान के प्रति बनाना
झूठा आडंबर कभी नही करना।
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कंजूस की पहचान आज मेने देखी
जब वो किसी लड़की के
विवाह की बात सामने आती है
कंजूस पहले अपनी कंजूसी के बारे में सोच लेता है
घर की पुरानी साड़ी ठिकाने लगाने की सोच लेता है
यदि बाजार से उसको कुछ लेना होता है
तो वह सस्ता कपड़ा की बुकिंग के बारे में सोचता है
यदि कोई गरीब यह करे तो उसे खपता है
किसी जेब भारी को यह शोभा नही देता है
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कंजूस को जब जाना होता है किसी मेहमानबाजी में
दिल सिकोड़ कर वह
घर की पुरानी मिठाई पुराने सड़े फल
लेकर चला आज कंजूस
अपनी पोल पट्टी कंजूसी की
खुद खोल कर उसकी परते सामने लोगो की रख आया।
यदि कंजूस को फल मिठाई बाजार से खरीदनी होती है
तो सहारा लेता है सस्ती दुकानों का
जिन मिठाइयों को वह बताता देशी घी की
वो तो डालडा की रिफाइन की होती
कंजूसी अपनी पोल खुद दूसरे के घर जाकर खुद खोल देती।
अरे कंजूसो कुछ मत ले जाओ दूसरो घरों के लिए
खासकर मेहमान जिस घर में तुम जाते हो
अगर तुम्हारे सड़े फल सडी मिठाई तुम्हारे सामने रख दी
खाने को विवश कर दिया तो क्या मुंह तुम्हारा रह जायेगा।
दोस्तो कभी पुरानी मिठाई सड़े फल
किसी दोस्त मित्र भाई
मत ये ले जाना
अपनी बेइज्जत अपने आप मत नीलाम करना।
उससे अच्छा यह है की कुछ मत ले जाना।
दोस्तो दान में कुछ कपड़ा देना ही है तो
अच्छा ही देना खराब देकर अपने पैसे बर्बाद मत करना।
इज्जत आपकी कुछ अच्छा देने से बड़े या नही बड़े
कुछ खराब देकर बेज्जत समाज तुमको जरूर कर देता।