नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबन्ध
EAssy on netaji Subash chandra bose hindi
भूमिका आजादी के असली नायक सुभाष चन्द्र बोस रहे ।जिन्होंने साहस के साथ लड़कर आजादी को लेने के लिये मैदान में कूदे थे। सुभाष चंद्र बोस देश के सच्चे सपूत थे। भारत और भारतवंशी सदा उनके कर्जदार रहेंगे।
सुभाष चन्द्र बोस पर यह निबन्ध उनके बारे में एक विस्तृत जानकारी है। जो हर भारतीय को जानना चाहिए। सुभाष
चंद्र बोस का यह निबन्ध कक्षा 1 से लेकर 12 तक के छात्र लिख सकते है। यह निबन्ध स्कुल कॉलेज में Eassy on Subash chandra bose in hindi. स्कूल कॉलेज में प्रोजेक्ट के लिये इस्तेमाल कर सकते है। हमारी वेबसाइड पर अन्य निबन्ध भी उपलब्ध है। उनको पढ़ कर अपने इस्तेमाल में लीजिये। सुभाष चंद्र बोस जिनको जो नेताजी के नाम से महशूर हुए । उनका देश की आजादी का नारा था। तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूँगा ।
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सुभाष चन्द्र बोस एक परिचय
सुभाष चन्द्र बोस का जन्म उड़ीसा के कटक शहर के प्रसिद्ध वकील जानकी नाथ बोस के वहा 1897 को हुआ था। जानकी नाथ बोस कटक शहर के जानेमाने हिन्दू कायस्त वकील थे। उनकी माता का नाम प्रभावती था। जानकीनाथ शहर के बड़े वकील थे। उन्होंने कटक की महापालिका में बहुत दिनों तक कार्य किया। वे बंगाल विधान सभा के सदस्य भी रहे। जानकीनाथ बोस की 6 बेटियां और 8 बेटे थे। सुभाष चंद्र बोस उनकी नोवी संतान थी।। वे पांचवे नम्बर के बेटे थे। इनके पिता सुभाष चन्द्र बोस को अन्य भाई बहनों की तुलना में ज्यादा प्यार करते थे।
सुभाष चंद्र बोस की शिक्षा
सुभाष चन्द्र बोस की शिक्षा एक यूरोपियन स्कूल से हुई थी। सुभाष चंद्र बोस ने 1913 में मेट्रिक की परीक्षा कोलकोता विस्वविद्यालय दूसरे स्थान प्राप्त किया। उसके बाद इनको उच्च शिक्षा के लिये उनके पिताजी ने उनको प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला दिलवा दिया। यहां एक अंग्रेज अध्यापक हिंदुस्तानियों से बहुत चिढ़ता था।
हिन्दूस्तानी छात्रों के साथ बुरा बर्ताव करता था उनका अपमान करता था। सुभाष चन्द्र बोस इसको सहन नही कर सके , और एक दिन उन्होंने उस अध्यापक की पिटाई कर दी। उसके बाद उनको उस स्कूल से निकाल दिया। इसके बाद सकाटिश विद्यालय से 1919 में इन्होंने बीए की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की । उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिये इनको इंग्लैंड जाना पड़ा। इंग्लैंड में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया और वही से इन्होंने आई सी एस की परीक्षा को उत्तीर्ण किया और स्वदेश लोटे। यह उच्च पदस्त अधिकारी बन गये। परन्तु उनको ठाटबाट से रहना पसंद नही था। वे देश की आजादी के लिये अपना जीवन पूरी तरह से देना चाहते है। सुभाष के परिवार वाले उनको आंदोलन में कूदने से रोक रहे थे। परंतु सुभाष चंद्र बोस नही माने। सुभाष चंद्र बोस के अंदर देश भक्ति कूट कूट कर भरी थी। वह देश को आजाद देखना चाहता है।
सुभाष चंद्र बोस का भारत की आजादी में योगदान
सुभाष चंद्र बोस के भारत की आजादी में बहुत महत्वपूर्ण योगदान था लेकिन उनके योगदान को जितना महत्व मिलना चाहिये था हकीकत में वो नही मिल पाया। सुभाष चन्द्र जब इंग्लैंड में पढ़ते थे उस समय उनकी दोस्ती सुरेश बाबू से हो गयी थी जो उस समय आंदोलन की रूपरेखा बना रहे थे। उस समय भारतवंशी आपस मे मिल कर देशभक्ति के लिये काम कर रहे थे।
सुभाष चंद्र बोस 1920 में महात्मा गांधी से मिले। महात्मा गांधी से वे प्रभावित थे लेकिन उनका मानना था कि आंदोलन शांति के रास्ते पर चल कर नही मिल सकता है।इसलिये बाद उन्होंने अपने दम पर ही लोगो का आह्वान किया कि तुम मुझे खून दो और मैं तुम्हे आजादी दूँगा। सुभाष चंद्र बोस ने आजादी की लड़ाई में आल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना की थी। जिसके माध्यम से आंदोलन की रूपरेखा बनाई जाती थी। सुभाष चंद्र बोस एक साहसी ,पराक्रमी ब्यक्ति थे। वे अंग्रेजो से लड़ने के लिये
नयी नयी रणनीति बनाते थे।
20 जुलाई 1921 में सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के सम्पर्ग में पहली बार आये। सुभाष चंद्र बोस को नेताजी के नाम महात्मा गांघी ने ही दिया था। गांघी जी उस समय सारे देश मे स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्त्व कर रहे थे। लोग उस आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे। इसलिये महात्मा
गांघी ने सुभाष चंद्र बोस को दासबाबू से कलकत्ता में जाकर
मिलने की सलाह दी थी । सुभाष जी उनसे मिले और असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। उन्ही दिनों जब प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आने पर उनका बहिष्कार किया गया। जिसके परिणाम स्वरूप सुभाष चंद्र बोस को 6 महीने के लिये जेल जाना पड़ा था। कांग्रेस द्वारा 1923 में स्वराज्य पार्टी की स्थापना की गयी थी। मोती लाल नेहरू उसके अध्यक्ष , चितरंजन दास थे। इस पार्टी का उद्देश्य विधान सभा मे ब्रिटिश सरकार का विरोध करना था। स्वराज पार्टी ने महापालिका का चुनाव जीत लिया था। जिसकी वजह से दस बाबू कलकत्ता के महापौर बन गये थे। इसी दौरान सुभाष चंद्र बोस क्रांति के अग्रदूत बन गये थे। उसी दौरान एक विदेशी की हत्या कर दी गयी थी। सुभाष चंद्र बोस को उस हत्या के शक में गिरप्तार किया गया। बोस जी जी जान से आंदोलन में कूद पड़े थे। सन 1929 1937 में वे कोलकोता अधिवेशन के मेयर बने। 1938 ओर 1939 में वे कांग्रेसः के सभापति चुने गये थे।
कांग्रेस से त्याग पत्र
सुभाष चंद्र बोस अपने तीर्व क्रांतिकारी विचारों की वजह से अंगेज सरकार ने उनको जेल में भेज दिया। जेल में उन्होंने भूख हड़ताल कर दी।जिसकी वजह से देश मे अशांति फेल गयी थी ।इसलिये अंगेज सरकार ने इनको घर मे ही नजर बन्द रखा। सुभाष चंद्र बोस ने 26 जनवरी 1942 को पुलिस को चकमा देकर जियाउद्दीन नंबसे काबुल के रास्ते
जर्मनी पहुँच गये। वहां वे जर्मनी के नेता हिटलर से मिले। हिटलर ने जब उनको देखा तो देखता रह गया की भारत वाशी ऐसे होते है। सुभाष चंद्र बोस एक बहुत स्मार्ट ब्यक्ति थे। हिटलर ने उनका स्वागत किया। सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी रेडियो केंद्र से भारतवंशियों के नाम संदेश प्रकाशित किया। देश की आजादी के लिये उनका संघर्ष त्याग बलिदान इतिहास में सदा प्रकाशवान रहेगा।
आजाद हिंद सेना
सुभाष चंद्र बोस जानते थे कि सेना के बिना अंग्रेजो का मुकाबला करना मुश्किल है । इसलिये उन्होंने आजाद हिंद सेना का गठन किया। वे जर्मनी से टोकियो गये। वह उन्होंने आजाद हिंद सेना की स्थापना की । उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी का नेतृत्व किया। वह अंग्रेजो से लड़कर भारत को आजाद करवाना चाहते थे। आजाद हिंद फौज ने घोषणा की थी की वे लड़ते लड़ते दिल्ली जायेगे। वह वे देश की आजादी की घोषणा करेंगे या अपने प्राणो को त्याग देगे। लेकिन जापान के युद्ध हारने के कारण आजाद हिंद फौज को भी समपर्ण करना पड़ा था।
सुभाष चंद्र बोस की म्रत्यु
सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु जब वे बैंकाक से टोकियो हवाई जहाज से जा रहे थे। उस समय हवाई जहाज में आग लग गयी थी। जिसकी वजह से उनका स्वर्गवाश माना जाता है। लेकिन इसका कोई भी सपूत आज तक नही मिला। 18 अगस्त 1945 को टोकियो रेडियो ने इस समाचार को प्रकाशित किया था।।
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