सुगन्ध कविता पाठ / Sugandh kavita path hindi
सुगन्ध मैं सुगन्ध हु
सबको सुगन्ध देती हूं
कोई मुझे सुगन्ध कहता
कोई मेरा नाम बदल देता।
कोई मुझे गुलाब कहता
कोई मुझे गूगल
कोई मुझे चंदन
तो कोई मुझे सुगन्ध।
भगवान को मैं
सुगन्ध बिखेरती
अपनो का मन मोह लेती
फिर भी मैं डब्बी में कैद होती।
क्या यही मेरी विवशता
तुम जान लो
डब्बी में रह कर भी
कैद नही हो पाऊँगा।
मैं हु सुगन्ध
कोई कैसे कैद मुझे कर सकता
में हु स्वछंद
जहा रहूंगी सुगन्ध जरूर बिखेरूगी।
इतना जान लो
सुगन्ध को कभी कैद न करना
दुर्गंध को कभी पास न आने देना
दुर्गंध का इलाज ही है सुगन्ध ये जान लेना।
हर पूजा हर व्रत
हर मंदिर हर गुरुद्वारा हर धर्म के लोग
मैं ही सुगंध बिखेरती
सब की मुराद में सहयोगी ।
मैं कितने कष्ट के बाद अपने स्वरूप में आती
सबको दिल से दुआ कबूल करवाती
में सुगन्ध किंतनी प्यारी
सबको जीवन मे लुभाती यही मेरी खासियत ।