कुंडली मिलान में भृकुट दोष क्या होता है समझे
सनातन धर्म में विवाह से पूर्व कुंडली मिलान का विधान है इसका मुख्य उद्देश्य वर वधु की जीवन शैली को आसान बनाना होता है लेकिन आजकल पेकेज के चक्कर में लोग यह मिलान भी ठीक से नहीं कर पाते है। कुंडली मिलान में नाड़ी की मुख्य भूमिका है नाड़ी मिलान जरूरी है दूसरा तारा और योनि भृकुट मिलान भी जरूरी है । आज बात करेगे भृकुट दोष के बारे में भृकुट दोष क्या होता है भृकुट दोष क्या होता है उसको नीचे समझे।
भृकुट दोष क्या होता है
जोतिष विज्ञान के मुताबिक वर वधु की कुंडली मिलान में जब चंद्रमा ६ / ८ ९/५ १२/२ भाव में स्थित होने से भृकुट दोष लगता है । इसलिए विवाह से पहले वर वधु की कुंडली मिलान जरूरी है। आसान शब्दों में कहें तो यदि वर की राशि मेष है और वधु की राशि कन्या है तब ६/८ का भृकुट दोष लगता है। भृकुट दोष तीन तरह से लगता है जिसका प्रतांक ७ होता है।
वर वधु की कुंडली में यदि ६/८ का भृकुट दोष लगता है तब विवाह के बाद शारीरिक कष्ट बना रहने की संभावना होती है। और यदि ९ /५ का का भृकुट दोष लगता है तब संतान पैदा होने में देरी होती है और साथ ही पति पत्नी में दूरियां भी बढ़ती है। तीसरा कुंडली मिलान में भृकुट दोष १२/२ होता है तब धन की हानी और वियोग का सामना भी करना पड़ सकता है।
भृकुट दोष में पहला और दूसरा उतना खतरनाक नही होता है यदि अन्य गुण भाव ठीक से मिल रहे हो लेकिन तीसरा भृकुट दोष ठीक नही माना जाता है। भृकुट दोष में भी विवाह हो सकता है यदि वर और कन्या की कुंडली मिलान में २६ गुण मिल रहे है तब भृकुट दोष समाप्त हो जाता है काफी हद तक और योग्य पुरोहित विवाह की सलाह देते है । यदि योनि के गुण २ से अधिक हो तो २० गुण से ऊपर भी विवाह ठीक माना जाता है योनि में गुण का प्रताँक १ होने पर २५ गुण भी मिले तो विवाह ठीक नही। दोनो राशियों के स्वामी मित्र हो तब कुछ हद तक योनि दोष टाला जा सकता है । बेमेल कुंडली विवाह में भविष्य में तकरार रहेगी और तलाक की नौबत इन्ही कारणों से आती है। कुंडली में योनि मिलान को भी महत्वपूर्ण बताया गया है । शत्रु और महा शत्रु योनि में विवाह को वर्जित बताया गया है। लोगो को जानकारी अभाव में बेमेल विवाह तलाक का कारण बनते है और पति पत्नी में दूरियां लाते है।
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